मोमिन व काफ़िर

मोमिन और काफ़िर का वाक़िया 

      अल्लाह तआला ने सूरः कहफ़ में अस्हाबे कहफ़ के वाक़िए के बाद एक और वाक़िए का ज़िक्र फ़रमाया है। यह वाक़िया दो इंसानों के दर्मियान मुनाज़रे जैसी गुफ्तगू की शक्ल में हुआ है और साथ ही इसका नतीजा और फल भी ज़िक्र किया गया है यानी एक का तरीका-ए-ज़िंदगी माल के एतबार से कामयाब रहा और दूसरे को नदामत व हसरत का मुंह देखना पड़ा। कुरआन ने जिस अन्दाज़ में इस वाकिए का ज़िक्र किया है, हदीस और सीरत और तारीख़ की किताबों में इससे ज़्यादा कुछ नहीं, इसलिए उसी की तरफ़ लौटना चाहिए –

      तर्जुमा- ‘और (ऐ पैग़म्बर) लोगों को एक मिसाल सुना दो, दो आदमी थे, उनमें से एक के लिए हमने अंगूर के दो बाग़ मुहय्या कर दिए, गिर्दागिर्द खजूर के पेडों का घेरा था, बीच की ज़मीन में खेती थी, पस ऐसा हुआ है। बाग़ फलों से लद गए और पैदावार में किसी तरह की भी कमी न हुई। उनके बीच (सिंचाई के लिए) एक नदी जारी कर दी थी। नतीजा यह निकला कि वह आदमी दौलतमंद हो गया, तब एक दिन (घमंड में आकर) अपने दोस्त से (जिसे खुशहालियां मयस्सर न थी) बातें करते-करते बोल उठा, देखो, मैं तुमसे ज़्यादा मालदार हूँ और मेरा जत्था भी बड़ा ताकतवर जत्था है कि (ये बातें करते हुए) अपने बाग़ में गया और वह अपने हाथों अपना नुकसान कर रहा था। उसने कहा, मैं नहीं समझता कि ऐसा शादाब बाग़ कभी वीरान हो सकता है।

      मुझे उम्मीद नहीं कि क़यामत की घड़ी बरपा होगी और अगर ऐसा हुआ भी कि मैं अपने परवरदिगार की तरफ लौटाया गया तो (मेरे लिए क्या खटका है। मुझे ज़रूर (वहां भी) इससे बहतर ठिकाना मिलेगा। यह सुनकर उसके दोस्त ने कहा और आपस में बात-चीत का सिलसिला जारी था, क्या तुम उस हस्ती का इंकार करते हो जिसने तुम्हें पहले मिट्टी से और फिर नुत्फ़े से पैदा किया और फिर आदमी बनाकर सामने ला दिया, लेकिन मैं तो यकीन रखता हूं कि वही अल्लाह मेरा परवरदिगार है और मैं अपने परवरदिगार के साथ किसी को शरीक नहीं करता और फिर जब तुम अपने बाग़ में आए (और उसकी शादाबियां देखी) तो क्यों तुमने यह न कहा कि वही होता है जो अल्लाह चाहता है उसकी मदद के बग़ैर कोई कुछ नहीं कर सकता? और यह जो तुम्हें दिखाई दे रहा है कि मैं तुमसे माल और दौलत कमतर रखता हूं, तो (उस पर घमंड न कर)।

      क्या अजब है मेरा परवरदिगार मुझे तुम्हारे इस बाग़ से भी बहतर बाग़ (जन्नत) दे दे और तुम्हारे बाग़ पर आसमान से ऐसी अन्दाज़ा की हुई बात उतार दे कि वह चटयल मैदान होकर रह जाए या फिर बर्बादी की कोई और शक्ल निकल आए। जैसे उसकी नहर का पानी बिल्कुल नीचे उतर जाए और तुम किसी तरह भी उस तक न पहुंच सको और फिर (देखो) ऐसा ही हुआ कि उसकी दौलत (बर्बादी) के घेरे में आ गई। वह हाथ मल-मल कर अफ़सोस करने लगा कि इन बागों की दुरुस्तगी पर मैंने क्या कुछ खर्च किया था (वह सब बर्बाद हो गया) और बागों का हाल यह हुआ कि टट्टियां गिर कर के ज़मीन के बराबर हो गईं।

      अब वह कहता है, ऐ काश! मैं परवरदिगार के साथ किसी को शरीक न करता और देखो काई जत्था कि अल्लाह के सिवा उसकी मदद करता और न खुद उसने यह ताकत पाई कि बर्बादी से जीत सकता, यहां से मालूम हो गया कि हक़ीक़त में सारा इख़्तियार अल्लाह ही के लिए है, वही है, जो बहतर सवाब देने वाला है और उसी के साथ बहतर अंजाम है।’ (18:32-44) 

वाक़िए की तशरीह (व्याख्या)

      इन आयतों से पहले यह ज़िक्र हो रहा है कि जो लोग इंकारी हैं, उनके लिए जहन्नम की आग है और जो ईमान वाले हैं, उनके लिए हर किस्म की ख़ुश ऐशियां हैं और हमेशा का बाग़ (जन्नत) है। इसके बाद बहस में आई आयत में यह कहा जा सकता है कि जो इंकारी हैं, उनके लिए सिर्फ आख़िरत ही की महरूमियां नहीं हैं, बल्कि वे इस दुनिया में भी बहुत जल्द नाकामियों और बदबस्तियों से दोचार होने वाले हैं। उनका यह घमंड कि उनको हर किस्म का आराम और खुशऐशी हासिल है और वे माल व दौलत के मालिक हैं और उनका जत्था भी बहुत ताक़तवर है, बहुत जल्द ख़ाक में मिल जाने वाला है और ईमान वाले अपनी मौजूदा तंगहाली पर बददिल न हों कि वक्त आ पहुंचा है कि उनकी यह बेचारगी और बेबसी हर किस्म की इज़्ज़त व ताक़त से बदल जाएगी। साथ ही यह कि दुनिया की खुशऐशी भी चलती फिरती छांव है, उस पर भरोसा बेकार है। वह जब मिटने पर आती है तो लम्हों की भी देर नहीं लगती और दुनिया की कोई भी ताक़त उसको नहीं बचा सकती।

अजब नादां है जिनको है उज्बे ताजे सुलतानी
फ़लक वाले हुमा को पल में सौंपे है मगस रानी

बहरहाल यह वाक़िया हो या मिसाल, याददेहानी कराने और डराने के जिस मक्सद की खातिर बयान की गई है, उसे देखते हुए मक्का के मुशरिकों और मुसलमानों के आपस में मुक़ाबले का बड़ा ही जामेअ और हर पहलू से मुकम्मल नशा है और मुसलमानों के हक में नासाज़गार हालात के वक़्त उनकी कामयाबी और मुशरिकों की नाकामी के उस अंजाम की खबर दी है जो कुछ दिनों बाद होने वाला था।

सबक़ और नतीजे

      1. दुनिया की नेमतें दो घड़ी की धूप और चार दिन की चांदनी है। कमज़ोर और मिट जाने वाली, पस अक्लमंद वह है जो इन पर घमंड न को और इनके बलबूते पर अल्लाह की नाफरमानी पर आमादा न हो जाए और तारीख के उन पन्नों को निगाह में रखे, जिनकी गोद में फ़िरऔन, नमरूद. समूद और आद की जाबिराना ताक़तों का अंजाम आज तक महफूज है।

      तर्जुमा- ‘ज़मीन की सैर करो और फिर देखो कि नाफरमानों का अंजाम क्या हुआ।’ (27-69)

      2. सच्ची इज़्ज़त अल्लाह पर ईमान और भले अमल से बनती है, दौलत व सरवत और सतवत व दुनिया की हश्मत से हासिल नहीं होती। मक्का के कुरैश को सरवत व सतवत दोनों हासिल थीं, मगर बद्र के मैदान में उनका बुरा अंजाम और दीन द दुनिया की उनकी रुसवाई को कोई रोक न सका। मुसलमान दुनिया के हर किस्म के ऐश के सामान से महरूम थे, मगर अल्लाह पर ईमान और नेक अमल ने जब उनको दीनी और दुनिया की इज़्ज़त व हश्मत अता की, तो उसमें कोई रुकावट न बन सका।

      तर्जुमा- ‘हक़ीक़ी इज़्ज़त अल्लाह, उसके रसूल और मुसलमानों के लिए ही है, मगर मुनाफिक इस हकीक़त को नहीं जानते।’ (69-8)

      3. मोमिन की शान यह है कि अगर उसको अल्लाह ने दुनिया की नेमतों से नवाज़ा है तो घमंड और तकब्बुर के बजाए अल्लाह के दरबार में माथा झुका कर नेमत का एतराफ़ करे और दिल व ज़ुबान दोनों से इक़रार करे कि अल्लाह अगर तौबा न अता- फ़रमाता तो उनका हासिल करना मेरी अपनी क़ुव्वत व ताक़त से बाहर था। सब तेरी ही अता व बख़्शिश का सदक़ा है –

      ‘व लोला इज़ दख़ल-त जन्न-त-क कुल-त माशाअल्लाह, व ला क्रूव-त इल्ला बिल्लाहि०’

      जन्नत के छिपे ख़ज़ानों में से एक ख़ज़ाना यह है कि बन्दा माने कि भलाई करने की ताकत और बुराई से बचने की ताक़त अल्लाह की मदद के बिना नामुमकिन है, यानी जिस आदमी ने ज़ुबान से इसका इकरार किया और में इस हक़ीक़त को बिठा लिया, उसने गोया जन्नत के ख़ज़ाने की कुंजी हासिल कर ली।

      4. सईद (भाग्यवान) वह है जो अंजाम से पहले अंजाम की हक़ीक़त का और ले और अंजाम यह हो कि अबदी व सरमदी सआदत पाए और शकी बदबख़्त वह है जो अंजाम पर गौर किए बगैर एक तो घमंड और गुरूर ज़ाहिर करे और इस बुरे अंजाम को देखने के बाद नदामत (शामिन्दगी) और हसरत का इज़हार करे और यह नदामत व हसरत उस वक़्त कुछ काम न आए। चुनांचे इस वाकिए या मिसाल में भी इन्कार करने वाले को वही शक़ावत (दुर्भाग्य) पेश आई और यही बुरा अंजाम फ़िरऔन को भी देखना पड़ा कि वक़्त गुजरने पर उसने वही कहा कि अगर अज़ाब को देखने से पहले हज़रत मूसा (अलै.)  की नसीहत मान लेता तो इस दर्दनाक अज़ाब की भेंट न चढ़ता।

To be continued …