हज़रत आदम अलैहिस्सलाम

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम

आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश, फ़रिश्तों को सज्दे का हुक्म, शैतान का इंकार:

     अल्लाह तआला ने आदम को मिटटी से पैदा किया और उनका ख़मीर तैयार होने से पहले ही उसने फ़रिश्तों को यह ख़बर दी कि वह बहुत्त जल्द मिट्टी से एक मख्लूख पैदा करने वाला है जो ‘बशरः‘ कहलाएगी और ज़मीन में हमारी ख़िलाफ़त का शरफ़ हासिल करेगी।

     आदम का ख़मीर मिट्टी से गुंधा गया और ऐसी मिट्टी से गूंधा गया जो नित नई तब्दीली क़ुबूल कर लेने वाली थी। जब यह मिट्टी पक्की ठीकरी की तरह आवाज़ देने और खनखनाने लगी तो अल्लाह तआला ने उस मिट्टी के पुतले में रूह फूंकी और वह एक ही वक़्त में गोश्त-पोस्त, हड्डी-पुट्ठे का ज़िंदा इंसान बन गया और इरादा, शऊर, हिस्से, अकल और विज्दानी जज़्बात व कैफियात का हामिल नज़र आने लगा।

     तब फरिश्तों को हुक्म हुआ कि तुम उसके सामने सज्दे में गिर जाओ, फ़ौरन तमाम फ़रिश्तों ने इर्शाद की तामील की, मगर इब्लीस (शैतान) ने घमंड और सरकशी के साथ साफ़ इंकार कर दिया।

सज्दे से इन्कार करने पर इब्लीस का मुनाज़रा:

     अल्लाह तआला अगरचे ग़ैब का इल्म रखने वाला और दिलों के भेदों तक को जानने वाला है और माझी, हाल और मुस्तक्रिबल (भूत, वर्तमान, भविष्य) सब उसके लिए ,बराबर हैं, मगर उसने इम्तिहान व आज़माइश के लिए इब्लीस (शैतान) से सवाल किया –
     ‘किस बात ने झुकने से रोका, जब कि मैंने हुक्म दिया था ? आराफ़ 7:12

     इब्लीस ने जवाब दिया – 
     ‘इस बात ने कि मैं आदम ते बेहतर हुं, तूने मुझे आग से पैदा किया इसे मिटटी से’ आराफ़ 7:12

     शैतान का मकसद यह था कि मैं आदम से अफ़ज़ल हूं, इसलिए कि अल्लाह ने मुझको आग से बनाया है और आग बुलन्दी और बरतरी चाहती है, और आदम ‘खाखी मख्लूक़’ भला ख़ाक को आग से क्‍या निस्बत? मैं तमाम हालतों में आदम से बेहतर हूं इसलिए वह मुझे सज्दा करे, न कि मैं उके सामने सज्दा करूं? मगर बदबख़्त शैतान अपने घमंड में चूर होने की वजह से भूल गयां कि जब तुम और आदम दोनों अल्लाह की मख़्लूक़ हो तो मख्लूख की हकीकत ख़ालिक़ से बेहतर, ख़ुद वह मखलूक़ भी नहीं जान सकती, व अपने घमंड और ग़ुरूर में यह न समझ सका कि मर्तबा की बुलन्दी और पस्ती उस माद्दे की बुनियाद पर नहीं है, जिससे किसी मख़्लूक़ का ख़मीर तैयार किया गया है, बल्कि उसकी उन सिफ़तों पर है जो कायनात के पैदा करने वाले ने उसके अन्दर रख दिए हैं।

     बहरहाल शैतान का जवाब, चूंकि घमंड और गुरुर की जहालत पर कायम था, इसलिए अल्लाह तआला ने उस पर वाज़ेह कर दिया कि जहालत से पैदा होने वाले घमंड व ग़ुरूर ने तुझको इतना अंधा कर दिया है कि तू अपने  पैदा करने वाले के हक़ के एहतराम से भी मुन्किर हो गया इसलिए मुझको जालिम क़रार दिया, पस तू अब इस सरकशी की वजह से अबदी हलाकत का हक़दार है और यही तेरे अमल का क़ुदरती बदला हैं।

इब्लीस ने मोहलत तलब की:

     इब्लीस ने जब देखा कि कायनात के पैदा करने वाले के हुक्म के ख़िलाफ़ करने, तकब्बुर और अल्लाह पर जुल्म के इल्ज़ाम ने हमेशा के लिए मुझको अल्लाह रब्बुलआलमीन की आग़ोशे रहमत से मरदूद और जन्नत से महरूम कर दिया, तो तौबा और नदामत की जगह अल्लाह से यह दरख्वास्त की कि कियामत आने तक मुझको मोहलत दे और इस लम्बी मुद्दत के लिए ज़िंदगी की रस्सी लम्बी कर दे।

     अल्लाह की हिक्मत का तक़ाज़ा भी यही था, इसलिए उसकी दरख़्वास्त मंजूर कर ली गयी। यह सुनकर अब उसने फिर एक बार अपनी शैतानी का मुज़ाहरा किया, कहने लगा:
     ‘जब तूने मुझको मरदूद करार कर ही दिया, तो जिस आदम की बदौलत मुझे यह रूस्वाई नसीब हुई, मैं भी आदम की औलाद की राह मारूगा और उनके सामनें-पीछे, आस-पास और चारों ओर से होकर उनको गुमराह करूंगा और उनकी अक्सरीयत को तेरा नाशुक्र बना छोड़ंगा अलबत्ता तेरे ‘मुख्लिस बन्दे’ मेरे फरेब के तीर से घायल न हो सकेंगे और हर तरह महफूज़ रहेंगे।’

     अल्लाह ने फ़रमाया –
     ‘हम को इसकी क्या परवाह हमारी फ़ित्तरत का क़ानून, मुकाफ़ाते अमल और पादाशे अमल अटल क़ानून है। पस जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा और जो बनी आदम मुझसे रूगरदानी करके तेरी पैरवी करेगा, वह तेरे ही साथ मेरे अज़ाब का हक़दार होगा। जा, अपनी ज़िल्लत और रुस्वाई और ख़राब किस्मत के साथ यहां से दूर हो और अपनी और अपने पैरोकारों की अबदी लानत (जहन्नम) का इंतज़ार कर।’

आदम अलैहिस्सलाम और दूसरे फ़रिश्ते:

आदम अलैहिस्सलाम की खिलाफत –

     जैसा कि पहले बयान किया गया है, जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों को ख़बर दी कि मैं ज़मीन पर अपना ख़लीफ़ा बनाना चाहता हूं जो इख्तियार और इरादे का मालिक होगा और मेरी ज़मीन पर, जिस का तसर्रुफ़ (इस्तेमाल का हक हासिल) करना चाहेगा, कर सकेगा और अपनी ज़रूरतों के लिए अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ काम ले सकेगा, गोया वह मेरी कुदरत और मेरे तसर्रफ़ (इस्तेमाल) व अख़्तियार का ‘मज़्हर’ होगा।

     फ़रिश्तो ने यह सुना तो हैरत में रह गए और अल्लाह के दरबार में अर्ज किया कि अगर इस हस्ती की पैदाइश की हिक्मत यह है कि वह दिन-रात तेरी तस्बीह व तहलील में लगा रहे और तेरी तक़दीस और बुज़ुर्गी के गुन गाए तो इसके लिए हम हाज़िर हैं, जो हर लम्हा तेरी हम्द व सना करते और बे-चून व चरा तेरा हुक्म ‘बजा लाते हैं। हम को तो इस ‘ख़ाकी” से फितना व फ़साद की बू आती है। ऐसा न हो कि यह तेरी ज़मीन में ख़राबी, और ख़ूरेजी पैदा कर दे? ऐ अल्लाह! तेरा यह फ़ैसला आख़िर किस हिक्मत पर मबनी है?

     बारगाह़े इलाहीं से एक तो उनको यह अदब सिखाया गया कि मसख़्लूक़ को ख़ालिक के मामलों में जल्दबाज़ी से काम न लेना चाहीए और उसकी जानिब से हक़ीक़ते हाल के ज़ाहिर होने से पहले ही शक व शुब्हा को सामने न लाना चाहिए और वह भी इस तरह कि इसमें अपनी बरतरी और बड़ाई का पहलू निकलता हो, कायनात का पैदा करने वाला इन हक़ीक़तों को जानता है, जिनको तुम नहीं जानते और उसके इल्म में व्रह सब कुछ है, जो तुम नही जानते।

आदम अलैहिस्सलाम की तालीम (इल्म का सिखाना) और फ़रिश्तों का इज्ज़ का इक़रार:

     इस जगह फ़रिश्तों का सवाल इसलिए न था कि वे अल्लाह तआला से मुनाज़रा या उसके फैसले के मुताल्लिक़ मूशगाफ़ी करें, बल्कि वे आदम की पैदाइश का सबब मालूम करना चाहते थे और यह कि उसको ख़लीफ़ा बनाने में क्या हिक्मत है? उनकी ख्वाहिश थी कि इस हिक्मत का राज़ उन पर भी खुल जाए, इसलिए उनके तर्ज़े अदा और मकसद की ताबीर में कोताही पर तंबीह के बाद अल्लाह तआला ने यह पसन्द फ़रमाया कि उनके इस सवाल का जवाब जो ज़ाहिर में हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तह्किर पर मब्नी है।

     अमल व फ़ेल के ज़रिए इस तरह दिया जाए कि उनको अपने आप आदमी की बरतरी ओर अल्लाह की हिक्मत की बुलन्दी और ऊंचाई को न सिर्फ़ मानना पड़े, बल्कि अपनी दरमांदगी और इज्ज़ का भी बदीही त्तौर पर मुशाहदा हो जाए, इसलिए हज़रत आदम को अपनी सबसे बड़ी मर्तबे वाली सिफत “इल्म” से नवाज़ा और उनको चीज़ों का इल्म अता फ़रमाया।

     और फिर फ़रिश्तों के सामने पेश करके इरशाद फ़रमाया कि तुम इन चीज़ों के बारें में क्या इल्म रखते हो? उनके पास इल्म न था, क्या जवाब देते? मगर अल्लाह से क़र्ब रखते थे, समझ गए कि हमारा इम्तिहान मक़्सूद नहीं है, क्योंकि इससे पहले हमकों इसका इल्म ही कब दिया गया है कि आज़माइश की जाती, बल्कि यह तंबीह मक़सूद है कि ‘ज़मींनी ख़िलाफ़त का मदार तस्बीह व तहलील की कसरत और तक़्दीस व तम्जीद पर नहीं बल्कि ‘इल्म‘ नामी सिफ़त पर है, इसलिए कि इरादा, अख़्तियार, कुदरत व तसर्रुफ़ और कुदरत का ईख़्तियार इल्म की ज़मीनी सिफ़त के बगैर नामुम्किन है। पस जबकि आदम को अल्लाह तआला ने अपने इल्म की सिफ़त का मज्हर बनाया है तो बेशक वही अरज़ी ख़िलाफ़त का हक़दार है।

     गोया हज़रत आदम को इल्म की सिफ़त से इस तरह नवाज़ा गया कि फ़रिश्तों के लिए भी उनकी बरत्तरी और ख़िलाफ़त के हक़ के इक़रार के अलावा कोई रास्ता न रहा और यह मानना पड़ा कि बेशक यह सिर्फ़ हज़रत इंसान के लिए मौजूं था कि वह जमींन पर ख़लीफ़ा बने और उन तमाम हक़ाइक, मआरिफ़ और उलूम व फुनून से वाक़िफ़ होकर नियाबतों इलाही का सही हक़ अदा करे।

हज़रत आदम का जन्नत में ठहरना और हव्वा का ज़ौजा बनना:

     हज़रत आदम अलैहिस्सलाम एक मुद्दत तक अकेले ज़िंदगी बसर करते रहे मगर अपनी ज़िंदगी और राहत व सुकून में एक वहशत और ख़ला महसूस करते रहे थे और उनकी तबियत और फ़ितरत में किसी मूनिस्त व गमख्वार की याद नज़र आती थी। चुनांचे अल्लाह तआला ने हज़रत हव्वा को पैदा किया और हजरते आदम “अपना हमदम और साथी” पा कर बहुत ख़ुश हुए और दिल में इत्मीनान महसूस किया। हज़रत आदम व हव्वा को इजाजत थी कि वे जन्नत में रहें-सहें और उसकी हर चीज़ से फ़ायदा उठाएं, मगर एक पेड को निशान-ज़द करके बता दिया गया कि उसको न खाएं, बल्कि उसके पास तक न जाएं।

आदम अलैहिस्सलाम का जन्नत से निकलना:

     अब इब्लीस को एक मौक़ा हाथ आया और उसने हज़रत आदम व हव्वा के दिल में यह वस्वसा डाला कि यह पेड़ जन्नत्त का पेड़ है। इसका फल खाना जन्नत में हमेशा आराम व सुकून  और अल्लाह का क़ुर्ब पाने की ज़मानत देता है और क़स्में खाकर उनको बताया कि मैं तुम्हारा ख़ैरख़्वाह हूं, दुश्मन नहीं हूं यह सुनकर हज़रत आदम के इंसानी और बशरी ख़्वास में सबसे पहले निस्या: (भूल-चूक) ने जुहूर किया और यह भुला बैठे कि अल्लाह का यह हुक्म ज़रूरी था, न कि रब की ओर से कोई मशविरा।

     आखिरकार जन्नत के हमेशा कियाम और अल्लाह के कुर्ब के अज़्म में लग्जिश पैदा कर दी और उन्होंने उस पेड़ का फल खा लिया। उसका खाना था कि बशरी लवाज़िम (इंसानी ज़रूरते) उभरने लगीं। देखा तो नंगे हैं और लिबास से महरूम। जल्द-जल्द आदम हव्वा दोनों पत्तों से सतर ढांकने लगे-गोया इंसानी तमद्दुन की यह शुरूआत थी कि उसने ढांकने के लिए सबसे पहले पत्तों का इस्तेमाल किया।

     इधर यह हो रहा था कि अल्लाह तआला का ग़ज़ब उतरा और आदम से पूछ-ताछ हुई कि मना करने के बावजूद यह हुक्म का न मानना क्यों? आदम आख़िर आदम थे, अल्लाह के दरबार के मक़्बूल थे, इसलिए शैतान की तरह मुनाज़रा नहीं किया और अपनी गलतियों को तावीलों के परदे में छुपाने की बेमतलब की कोशिश से बाज रहैं। नदामत व शर्मसारी के साथ इक़रार किया कि ग़लती ज़रूर हुई लेकिन इसकी वजह सरकशी नहीं, बल्कि इंसान होने के नाते भूल-चूक इसकी वजह है, फिर भी गलती है, इसलिए तौबा व इस्तिगफार करते हुए माफ़ कर दिए जाने की दरख्वास्त करता हूं।

     अल्लाह तआला ने उनके इस उज्र को कुबूल फ़रमाया और मुआफ़ कर दिया, मगर वक़्त आ गया था कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम अल्लाह की ज़मीन पर ‘ख़िलाफ़त का हक़” अदा करें, इसलिए हिक्मत के तक़ाज़े के तौर पर साथ ही यह फ़ैसला सुनाया कि तुमको और तुम्हारी औलाद को एक तय वक्त तक ज़मीन पर क़ियाम करना होगा और तुम्हारा दुश्मन इब्लीस अदावत के अपने तमाम सामान के साथ वहां मौजूद रहेगा और तुमको इस तरह मलकूती और तागुती दो टकराने वाली ताक़त़ों के दर्मियान ज़िंदगी बसर करनी होगी।

     इसके बावजूद अगर तुम और तुम्हारी औलाद मुख्लिस और सच्चे बन्दे और सच्चे नायब साबित हुए तो तुम्हारा असल वतन “जन्नत” हमेशा की तरह तूम्हारी मिल्कियत में दे दिया जाएगा, इसलिए तुम और हव्वा यहां से जाओ और मेरी ज़मीन पर बसों और अपनी मुक़र्रर की हुई ज़िंदगी तक उबूदियत का हक़ अदा करते रहो और इस तरह इंसानों के बाप और अल्लाह तआला के ख़लीफ़ा आदम अलैहिसलाम ने जीवन-साथी हज़रत हव्वा के साथ अल्लाह की ज़मीन पर क़दम रखा।

आदम अलैहिस्सलाम के ज़िक्र से मुताल्लिक्र क़ुरआनी आयतें:

     कुरआन मजीद में हजरत आदम अलैहिस्सलाम का नाम २५ बार पचीस आयत्तों में आया है। और अंबिया अलैहिस्सलाम के तज़्किरों में सबसे पहला तज़्किरां अबुल बशर हजरत आदम अलैहिस्सलाम का है जो नीचे लिखी सूरतों में बयान किया गया है:

     सूरः बक़रः, आराफ़, इसरा, कह्फ़ और ताहा में नाम और सिफ़तों दोनो के साथ और सूरः हजर व साद में से सिर्फ़ सिफ़्तों के जिक्र के साथ और आले इमरान मायदा और मरयम और यासीन में सिर्फ़ जिम्नी तौर पर नाम लिया गया है।

आदम अलैहिस्सलाम के क़िस्से में कुछ अहम इबरतें (नसीहतें):

     यों तो आदम अलैहिस्सलाम के वाक़िए में अनगिनत नसीहतों और मसअलों का जख़ीरा मौजूद है और उनका एहाता इस मुकाम पर नामुमकिन है फिर भी कुछ अहम इबरतों की तरफ़ इशारा कर देना मुनासिब मालूम होता है।

     1. अल्लाह त्आला की हिक्मतों के भेद अनगिनत और बेशुमार हैं और यह नामुम्किन है के कोई हस्ती, चाहे वह जितनी ही अल्लाह की बारगाह मे मुर्करब हो, इन तमाम भेदों को जान जाएं। इसीलिए अल्लाह के फ़रिश्ते इंतिहाई मुक़र्रब होने के बावजूद आदम अलैहिस्सलाम की ख़िलाफ़त की हिक्मत के जानकार न हो सके और जब तक मामले की सारी हकीकत सामने न आ गई वे हैरान व परेशान ही रहे।

     2. अल्लाह तआला की इनायत व तवज्जोह अगर किसी मामूली चीज़ की ओर भी हो जाए तो यह बड़े से बड़े मर्तबा और जलीलुलक़द्र मंसब पर पहुंच सकतीं है और शरफ़ व बुजुर्गी के ओहदे से नवाज़ी जा सकती है। खाख की एक मुट्ठी को देखिए और फिर “अल्लाह ने बनाये हुए जमींन के ख़लीफ़ा’ होने के मंसब पर नज़र डालिए और फिर उसके नुबुब्बत व रिसालत के मंसब पर नज़र डालिए, मगर उसकी तवज्जोह का फ़ैज़ान बख्त व इत्तिफ़ाक़ की बदौलत या हिक्मत के बग़ैर नहीं होता, बल्कि उस चीज़ की इस्तेदाद के मुनासिब बेनज़ीर हिक्मतों और मसलहतो के निजाम से जुड़ा होता है।

     3. इंसान को अगरचे हर किस्म का शरफ़ मिला और हर तरह की बूजुर्गी और बड़प्पन नसीब हुआ, फिर भी उसकी पैदाइशी और तबई कमजोरियाँ अपनी जगह उसी तरह क़ायम रहीं और बशर और इंसान होने की वह कमजोरी अपनी जगह बाक़ी रही। असल में यही वह चीज़ थी जिसने हजरत आदम अलैहिस्सलाम पर इस बुजुर्ग़ी और बड़े दर्जे के होते हुए ऐसी भूल लगा दी और वह इब्लीस के वसवसे में आ गए।

     4. ख़ताकार होने के बावजूद अगर इंसान का दिल शर्म और तौबा की तरफ़ माइल हो तो उसके लिए रहमत का दरवाज़ा बन्द नहीं है और उस बारगाह तक पहुंचने में नाउम्मीदी की अंधी घाटी नहीं पड़ती। अलबत्ता ख़ुलूस व सदाकत शर्त है और जिस तरह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की भूल-चूक की माफ़ी उसी दामन से वाबस्ता है, उसी तरह उनकी तमाम नस्ल के लिए भी अफ़्व और दुनिया की रहमत का भारी-भरकम दामन फैला हुआ है।

हज़रत हव्वा की पैदाइश किस तरह हुई?

     कुरआन मजीद में इसके बारे में सिर्फ़ इतना ही ज़िक्र है:
     “और उस (नफ़्स) से  इस जोड़े को पैदा किया।” अन-निसा 4:1

     यह कुरआनी नज़्म हव्वा की पैदाइश की तफ्सील नहीं बताती, इसलिए बातें हो सकती हैं: एक यह कि हव्वा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पसली से पैदा हुई हैं, जैसा कि मशहूर है और बाइबिल में भी इसी तरह जिक्र किया गया है।

     दूसरे यह कि अल्लाह ने इंसानी नस्ल को इस तरह पैदा किया कि मर्द के साथ उसी की जिंस से एक दूसरी मख्लूक़ भी बनाई, जिसको औरत कहा जाता है और जो मर्द की जीवन-साथी बनती है।

     जहां तक पहली बात का ताल्लुक़ है तो बुख़ारी व मुस्लिम की रिवायतों में भी ज़रूर आता है कि औरत पसली से पैदा हुई है। इसका मतलब मशहूर तहक़ीक़ करने वाले और पारखी अल्लामा क़रतबी रह० ने यह बयान किया है कि असल में औरत की पैदाइश को पसली से तश्बीह (उपमा) दी गई है, यानी उसका हाल पसली ही की तरह है। अगर इसकी टेढ़ को सीधा करना चाहोगे तो वह टूट जाएगी, तो जिस तरह पसली के तिरछरेपन के बावजूद उससे काम लिया जाता है और उसकी टेढ़ को दूर करने की कोशिश नहीं की जाती। उसी तरह औरतों के साथ नर्मी और मुलायमत का मामला करना चाहिए, वरना सख्ती के बर्ताव से ख़ुशगवारी की जगह ताल्लुक़ के बिखरने-टूटने की शक्ल पैदा होगी।

     मुख़्तसर यह कि ऊपर की आयत की तप़्सीर में तहक़ीक़ करने वालों की राय उस दूसरी तप़्सीर की ओर माइल है, जिसका हासिल यह है कि कुरआन अज़ीज़ सिर्फ़ हव्वा की तख़्लीक़ का जिक्र नहीं कर रहा है, बल्कि औरत की पैदाइश के बारे में यह हक़ीक़त भी बताता की वह भी मर्द ही की जिंस से है और इसी तरह मख्लूक़ हुई है।

फ़रिश्ता:

     कुरआन पाक और रसूल (ﷺ) की हदीसों ने जो कुछ हमको बताया है, उसका हासिल यह है कि हमको न ‘फ़रिश्तो’ की तख्लीक़ी हक़ीक्रत बताई गई है और न वे हमको नज़र आते हैं। अलबत्ता हमारे लिए यह यक़ीन व एतकाद ज़रूरी करार दिया गया है कि हम उनके वजूद को मान लें और उनको मुस्तक़िल मख़लूख़ जानें।

जिन्न:

     इसी तरह “जिन्न’ भी अल्लाह तआला की मुस्तक़िल मख्लूक हैं जिनकी पैदाइश की हक़ीक्रत को हम पूरी तरह नहीं जानते और न आम इंसानी आबादी की तरह वे हमको नज़र नहीं आते हैं। लेकिन कुरआन हकीम ने जो तफ़्सील इस मख़्लूक़ के बारे में बताई है, वह हमारे लिए ज़रूरी क़रार देती है कि हम यह एतक़ाद और यक़ीन रखें कि वे भी इंसान की तरह मुस्तक़िल मख्लूक़ हैं और उसी की तरह शराअत पर चलने को मजबूर भी। इनमें पैदा करने और बढ़ने का भी सिलसिला है और इनमें नेक और बद भी हैं।

इब्लीस या शैतान:

     कुरआन मजीद की आयतो से मालूम होता है कि शैतान भी ‘जिन्न‘ ही की नस्ल से है और इब्लीस (शैतान) ने अल्लाह के सामने ख़ुद यह माना कि इसकी तख्लीक़ (आग) से हुई है।

To be continued …