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उखदूद
ख़द्द’ या ‘उख़दूद‘ के मानी गढ़े, खाई और खंदक के हैं। यह एक वचन है और इसका बहुवचन ‘अखादीद‘ आता है, चूंकि बयान किए गए वाकिए में काफ़िर बादशाह और उसके अमीरों व सरदारों ने खंदकें और गढ़े खुदवा कर और उनके अन्दर आग धधकवाकर ईसाई मोमिनों को उनमें डाल कर ज़िन्दा जला दिया था। इस निस्बत से इन काफ़िरों को ‘अस्हाबुल उखदूद‘ कहा जाता है।
कुरआन और अस्हाबे उखदूद
सूर: बुरूज में अस्हाबुल उख़दूद का वाकिया बयान करने के मोजज़े भरे तरीके के साथ इस तरह ज़िक्र किया गया है –
तर्जुमा- ‘शुरू अल्लाह के नाम से जो बेहद मेहरबान और निहायत रहम वाला है आसमान की जिसमें बुर्ज है और उस दिन की जिसका है और उस दिन की जो हाज़िर होता है और उस दिन की जिसके पास हाज़िर होते हैं, मारे गए खाइयां खोदने वाले, आग है बहुत ईंधन वाली जब वे उस पर बैठे और जो कुछ वे करते थे मुसलमानों के साथ, अपनी आंखों से देखते थे और उनसे बदला नहीं लेते थे।
मगर सिर्फ इस बात का कि वे यक़ीन लाए अल्लाह पर जो ज़बरदस्त है, तारीफ़ों का हक़दार है, जिसका राज आसमानों में और ज़मीन में और अल्लाह के सामने है हर चीज़, बेशक! जो ईमान से बिचलाए ईमान वाले मर्दो और औरतों को, फिर तौबा न करे तो उनके लिए अज़ाब है दोजख का और उनके लिए अज़ाब है आग में जलने का। बेशक जो लोग यकीन लाए (अल्लाह पर) और उन्होंने भलाइयाँ की, उनके लिए जन्नत है, जिनके नीचे नहरें बहती हैं। यह है बहुत बड़ी कामयाबी।’ (85:1-11)
वाक़िए की तफ्सील
तफ़सीर लिखने वालों ने इन आयतों की तफ़सीर में कई वाकिए नकल किए हैं। हज़रत मौलाना हिफजुर्रमान स्योहारवी रह० ने इन तमाम रिवायतों पर तफ़सील से बहस की है और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि मशहूर ताबई मुकातिल की इबारत के मुताबिक कुरआन में जिस वाक़िये का ज़िक्र किया गया है, वह नजरान और जूनवास से ताल्लुक रखता है और तहक़ीक़ करने वालों का रुझान भी इसी ओर है।
यह वाक़िया साहबे सीरत मुहम्मद बिन इसहाक ने मुहम्मद बिन काब (रज़ि) की सनदी सिलसिले में नक़ल किया है, वह फ़रमाते है, कि शाम और हिजाज़ के दर्मियान जो बस्ती नज़रान के नाम से मशहूर है, उसके बाशिंदे चुत परस्त और मुशिरक थे और उनके करीब की आबादी में एक साहिर (जादूगर) रहता और वह नज़रान के लड़कों को सहर (जादू) की तालीम दिया करता था। कुछ दिनों के बाद नज़रान और जादूगर की बस्ती के दर्मियान एक राहिन (ईसाई सन्यासी) ने आकर अपना खेमा डाल लिया, यानी वहीं ठहर गया।
वहब बिन मुनब्बह कहते हैं कि उसका नाम मैमून था। नज़रान के जो लड़के जादूगर से जादूगरी की तालीम हासिल करते थे, उन में एक लड़का अब्दुल्लाह बिन तामिर भी था। एक दिन अब्दुल्लाह राहिब के खेमे में चला गया। राहिब नमाज़ में लगा हुआ था। अब्दुल्लाह को राहिब की नमाज़ और इबादत का तरीका बहुत पसन्द आया और उसके पास आने-जाने लगा और उससे उसके दीन को सीखना शुरू कर दिया और ईमान ले आया और राहिब से सच्चे मसीही धर्म की तालीम हासिल करके धीरे-धीरे उस दीन का आलिम बन गया।
अब उसने राहिब से यह इसरार (आग्रह) किया कि मुझको इस्मे आज़म के बारे में कुछ बताइए, मगर राहिब यह कह कर टालता रहा कि भतीजे ! मुझे यह डर है कि तू उसको बरदाश्त न कर सकेगा, क्योंकि तुझको कमज़ोर पाता हूं। लड़का ख़ामोश हो गया।
यहां तो यह सिलसिला जारी था और उधर अब्दुल्लाह का बाप तामिर यह समझता रहा कि मेरा लड़का साहिर से डर खा रहा है। कुछ दिन ख़ामोश रह कर लड़के से सब्र न हो सका और उसने यकीन कर लिया कि राहिब बुख्ल कर रहा है और बताना नहीं चाहता। यह सोच कर उसने तीरों का मुट्ठा लिया और हर एक तीर पर ख़ुदा का एक-एक नाम लिखा और फिर आग रोशन की और एक-एक तीर को उसमें डालना शुरू किया, तीर धीरे-धीरे आग की भेंट चढ़ते रहे और जलते रहे, मगर एक तीर जब आग में पहुंचा तो फ़ौरन उछलकर दूर जा गिरा।
लड़का समझ गया, इस पर इस्मे ज़ात खुदा हुआ है और यही इस्मे आज़म है और इसके बाद राहिब को सारा किस्सा कह सुनाया। राहिब ने सुना तो अब्दुल्लाह को नसीहत की कि इसको हिफ़ाज़त के साथ अपने पास रखना।
अब्दुल्लाह ने उसको दीने हक़ की तब्लीग का ज़रिया बना लिया। वह जिस किसी को मरीज़ पाता तो उससे यह कहता कि अगर तू एक अल्लाह पर ईमान ले आए और मोमिन (ईमान वाला) बन जाए तो मैं तेरे लिए अल्लाह तआला से दुआ करूं कि तुझको तन्दुरुस्त कर दे और जब वह शख्स सच्चे दिल से ईमान ले आता तो यह दुआ करता और मरीज़ चंगा होता।
धीरे-धीरे यह बात नज़रान के बादशाह तक पहुंची। उसने लड़के को बुलाया और कहा कि तूने मेरे राज में फसाद मचाया और मेरे और मेरे दादा के दीन की मुखालफ़त शुरू कर दी इसलिए अब तेरी सज़ा यह है तुझको क़त्ल कर दिया जाए। लडका कहने लगा, बादशाह! मेरा क़त्ल तेरी कुदरत से बाहर है।
बादशाह ने ग़ज़बनाक होकर हुक्म दिया कि इसको पहाड़ की चोटी से गिरा दो, सरकारी आदमियों ने उसको पहाड़ की चोटी से गिरा दिया, मगर अल्लाह की क़ुदरत ने उसको सही सालिम रखा और वह बादशाह के पास वापस आ गया। अब बादशाह ने हुक्म दिया कि इसको नदी में ले जाकर डुबो दो लेकिन वह दरिया में फेंक दिए जाने के बावजूद न डूबा और उसको ज़रा की कोई तकलीफ़ न पहुंची, तब लड़के ने बादशाह से कहा कि अगर तू वाकई मुझको क़त्ल कर देना चाहता है तो उसकी सिर्फ एक ही शक्ल है और वह यह कि तू एक अल्लाह का नाम लेकर मुझ पर हमला कर, तो मैं मारा जा सकता हूं।
बादशाह ने एक अल्लाह का नाम लेकर लड़के पर हमला किया तो लड़के की जान चली गई, मगर साथ ही अल्लाह के अज़ाब ने बादशाह को भी उसी जगह हलाक कर दिया।
शहर वालों ने जब लड़के और बादशाह के दर्मियान जंग का यह नज़ारा देखा, तो वे सब सच्चे दिल से एक अल्लाह पर ईमान ले आए और मुसलमान हो गए और उन्होंने सच्चाई के साथ हज़रत ईसा (अलै.) और इंजील की पैरवी को अपना दीन बना लिया, चुनांचे नज़रान में ईसाई धर्म के हकीक़ी और सच्चे दीन की बुनियाद इसी वाक़िये से पड़ी।
नज़रान में ईसाई धर्म का फैलाव और लड़के और साहिब के वाकिए का तज़्किरा यहूदी मज़हब के मानने वाले शाह यमन जूनवास तक भी पहुंचा। उसने सुना तो बड़े गुस्से में आ गया और भारी फ़ौज लेकर नज़रान पहुंचा और तमाम शहर में मुनादी करा दी कि कोई आदमी ईसाई धर्म पर कायम नहीं रह सकता या तो वह यहूदी धर्म कुबूल कर ले, वरना मरने के लिए तैयार हो जाए।
नज़रान के लोगों के दिलों में ईसाई धर्म इतना घर कर चुका था कि उन्होंने मर जाना कुबूल किया, मगर ईसाई धर्म से मुंह न मोड़ा। जूनवास ने यह देखा तो सख्त गुस्से में आ गया और हुक्म दिया कि शहर की गलियों और शाहराहों में खंदके और खाइयां खोदी जाएं और उनमें आग धधकाई जाए। जब फ़ौजियों ने इसकी तामील कर दी, तो उसने शहरियों को जमा करके हुक्म दिया कि जो आदमी यहूदी धर्म कुबूल करने से इंकार करता जाए मर्द हो या औरत या बच्चा, उसको ज़िन्दा आग में डाल दो।
चुनांचे इस हुक्म के मुताबिक बीस हज़ार के करीब मज़लूम इसानों को शहीद होना पड़ा। यही वह वाकिया है, जिसका ज़िक्र अल्लाह ने सूरः बुरूज में किया है।
कुति-ल असहाबुल उख़लूदि० अन-नारि ज़ातिल वकुद
क़ौम तुब्बअ
तुब्बअ की हक़ीक़त
तुब्बाअ असल में हवशी लफ्ज़ है या असल सामी, इसके बारे में अरब तारीखदानों की राय यह है कि यह अरबी (सामी) लफ़्ज़ है और तुब्बाअ से मतवूअ (सरदार) के माने समझे जाते हैं और नए तहक़ीक़ वाले यह कहते हैं कि यह लफ़्ज़ असल में हबशी भाषा का है और इसके मानी है क़ाहिर व गालिब यानी अरबी में ‘सुलतान‘ और हबशी भाषा में तुब्बाअ एक ही मानी वाले लफ़्ज़ (पर्यायवाची) हैं।
पिछले पन्नों में बयान किए गए वाक़िये को नकल करने के बाद इब्ने इसहान कहता है कि जूनवास यमन का मशहूर बादशाह है। उसका असल नाम ज़रआ था मगर सिंहासन पर बैठने के बाद यूसुफ़ जूनवास के नाम से मशहूर हुआ। उसके बाप का नाम तुब्बान असद था और अबूकर्ब कुन्नियत रखता था। यमन के इन बादशाहों का लक़ब ‘तुब्बअ‘ था। इसलिए तारीख की किताबों में यह खानदान तबाए यमन कहलाता है। अबू कुरैब वह पहला तुब्बअ है, जिसने बुतपरस्ती छोड़कर यहूदी धर्म कुबूल कर लिया था।
उसने मदीना पर हमला करके उस पर क़ब्ज़ा कर लिया था, मगर बनी कुरैज़ा के दो यहूदी उलेमा के कहने पर सच्चे दीन मूसवी को कुबूल करके मदीना से वापस चला आया और फिर मक्का मुअज्जमा पहुंच कर काबे पर गिलाफ़ चढ़ाया और दोनों यहूदी उलेमा को यमन साथ ले आया। उन्होंने यमन में यहूदी धर्म की तबलीग़ (प्रचार) की और धीरे-धीरे यमन वालों ने यहूदियत (यहूदी धर्म) अपना लिया।
क़ुरआन और क़ौम तुब्बअ
क़ुरआन ने तुब्बअ का ज़िक्र दो जगहों पर सूरः काफ़ और सूरः दुखान में किया है। सूरः दुखान में मुख़्तसर तौर पर उनकी माद्दी ताकत व क़ुव्वत का ज़िक्र करके यह बताया गया है कि जब अल्लाह की नाफरमानी करके वे हलाकत से न बचे, तो कुरैश, जो उनके मुकाबले में कुछ भी नहीं थे, सरकशी करके कैसे बच सकते थे और सूरः काफ़ में सिर्फ़ मुजरिम क़ौमों की फेहरिस्त में उनका ज़िक्र किया गया है।
तर्जुमा- ये (कुरैश) बेहतर (मज़बूत और ताकतवर) हैं या तुब्बाअ की क़ौम और जो इनसे पहले गुज़र गई, हमने उनको इसलिए हलाक कर दिया कि वे मुजरिम थे। (44:7)
तर्जुमा- ‘इन (मक्का के मुशरिको) से पहले नूह की कौम ने असहाबुर्रस्स ने, समूद, आद, फ़िरऔन, इख्याने लूत, अरहाबुल ऐका और कौमे तुब्बअ ने (अल्लाह के पैगम्बरों को) झुठलाया है।’ (50:12-14)
इब्ने इसहाक़ के बयान के मुताबिक यमन के यहूदी बादशाहों का लक़ब तुब्बअ वाज़ेह होता है, इस तरह बादशाह जूनवास का लकब, जिसका ज़िक्र ‘असहाबुलउख़दूद’ के सिलसिले में आ चुका है ‘तुब्बअ’ हुआ। मुख्तसर यह कि ‘असहाबुलउखदूद‘ का दूसरा नाम क़ौमे तुब्बअ हुआ जिसका ज़िक्र ऊपर की आयतों में किया गया है। वल्लाहु आलम।
सबक़ और नसीहत
1. जब इंसान इंफ़िरादी और इज्तिमाई ज़िदंगी में अल्लाह के ख़ौफ़ से बेपरवाह हो जाता है और उसकी दौलत व हुकूमत क नशा किब्र व ग़रूर को उस बुलन्दी पर पहुंचा देता है जिस पर चढ़ कर उसकी निगाह में तमाम मख्लूख और हक़ीर नज़र आने लगती है, तो अख़्लाक़े हसना और बुलन्द जज़्बात उससे किनारा अपना लेते हैं और वह अपनी ज़ात और ज़ाती गरज़ों के अलावा और कुछ नहीं देखता।
तब यकायक गैरते हक़ को हरकत होती है और वह इस तरह बुलन्दी से पटक देती है कि पस्ती व ज़िल्लत के तारीक ग़ार के अलावा उसके लिए और कोई जगह बाक़ी नहीं रहती। ‘अना रबबुकुमल आला’ (मैं ही तुम्हारा सबसे बड़ा रब हूँ) कहने वाला हक़ीक़ी रब की ऐसी कड़ी पकड़ में आ जाता है कि कायनात की भरपूर ताक़त न उसके काम आती है, न दुनिया की दौलत व हश्मत और उसके आगे सर झुका कर यह इकरार करना पड़ता है कि ‘इन-न बत-श रबि-क ल-शदीद०’ (बेशक तुम्हारे रब की पकड़ बहुत सख्त है।) (85 : 12)
2. इंसान इंसानियत की ख़ास खूबियों और निशानियों से बनता है, वरना हैवान से भी बदतर है और इंसानियत का तकाज़ा यह है कि जब इंसान को हर क़िस्म की दौलत व हश्मत और सामान मयस्सर हो और सतवत व ताक़त भी बे-अन्दाज़ नसीब हो, तो उस वक्त भी खुदा और ख़ुदा के डर से हरगिज़ बेगाना न हो।
तर्जुमा-‘और ऐ कौमे आद! वह वक्त याद करो, जब तुम को कौमे नूह के बाद उनका जानशीं बनाया और तुमको मख्लूक में हर तरह की फ़राखी अता की, पस अल्लाह की नेमतों को याद करो।’ (7:69)
तर्जुमा- ‘और ज़मीन में फ़साद करते न फिरो।’ (7:74)
तर्जुमा- ‘और हमने बेशक तुमको ज़मीन में कुदरत व सतवत अता की और तुम्हारे लिए उनमें ज़िदंगी के सामान बख्शे, फिर तुममें बहुत कम शुक्र गुज़ार हैं। (7-10)
3. इंसान जब अल्लाह तआला पर मज़बूत यकीन कर लेता और ईमान की मिठास से फ़ैज़याब हो जाता है तो फिर कायनात की बड़ी से बड़ी ताकत और दुनिया का हौलनाक ज़ुल्म भी उसको हक़ व सदाक़त से डगमगा नहीं सकता और वह इस्तिकामत का पहाड़ बनकर ईसार व कुरबानी का पैकर साबित होता है चुनांचे ‘अस्हावे उख़दूद’ का वाकिया इसकी ज़िन्दा गवाही है।
4. ‘जज़ा अज़ जिन्से अमल‘ अल्लाह तआला का बोलता कानून है लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि ज़ालिम व मुतक़ब्बिर को जुल्म व किब्र के वजूद मे आते ही फ़ौरन सज़ा मिल जाए इसलिए कि रहमत की सिफ़त के तक़ाज़े के तौर पर यहां साथ-साथ मोहलत देने का कानून भी काम कर रहा है अलबत्ता जब अचानक पकड़ कर ली जाती है तो फिर छुटकारा नामुम्किन है।
To be continued …