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हज़रत शमूईल (अलै.) के किस्से में हज़रत तालूत (अलै.), जालूत और हज़रत दाऊद (अलै.) का भी ज़िक्र आता है इसलिए शुरू ही में उन शख्सियतों का थोड़े में बयान किया जाता है।
क़ुरआन पाक और हज़रत शमूईल (अलै.)
क़ुरआन में हज़रत शमूईल (अलै.) का नाम नहीं है बल्कि उन आयतों में जिस नबी का ज़िक्र है, वह यही शमूईल हैं-
तर्जुमा– ‘क्या तुमको बनी इसराईल की उस जमाअत का हाल मालूम नहीं जिसने मूसा (अलै.) के बाद अपने ज़माने के नबी से दरख़्वास्त की थी कि हम अल्लाह के रास्ते में जिहाद करेंगे, हमारे लिए एक हुक्मरां मुकर्रर कर दीजिए। (अल-बकरः 246)
हज़रत तालूत (अलै.) (Saul)
ऊपर की आयत में की गई दरख़्वास्त के मुताबिक अल्लाह तआला ने जिसे हुक्मरां मुक़र्रर किया वह हज़रत तालूत (अलै.) हैं-
तर्जुमा– “फिर ऐसा हुआ कि उनके नबी ने कहा कि अल्लाह ने तुम्हारे लिए तालूत (अलै.) को मुक़र्रर किया है।” (अल-बकरः 247)
जालूत (Goliath)
दुश्मन की फौज का सरदार जालूत नामी देव हैकल शख्स था। जालूत का नाम (सूरः बकरः आयत न. 249, 250-51) में आया है।
हज़रत दाऊद (अलै.) (David)
दुश्मन की फ़ौज के मुकाबले में हज़रत तालूत की रहनुमाई में ही इसराईल में से जिस आदमी ने बहादुरी के जौहर दिखाए और जालूत को क़त्ल किया वह हज़रत दाऊद (अलै.) हैं। (उनका तफ़सील से ज़िक्र अलग किया गया है वहां देखिए-
हज़रत शमूईल (अलै.) का नबी बनाया जाना:
हज़रत यूशेअ (अलै.) के ज़माने में बनी इसराईल जब फ़लस्तीन की सरज़मीन में दाखिल हो गए तो वह आखिर उम्र तक उनकी निगरानी और इस्लाह में लगे रहे और उनके मामले और आपसी झगड़ों के फैसलों के लिए क़ज़ियों को मुकर्रर किया। काफ़ी असें तक यह निज़ाम चला। लेकिन एक वक्त ऐसा ‘आया कि उनमें न कोई नबी या रसूल था और न कोई पूरी क़ौम का हुक्मरां था, इसीलिए पड़ोसी कौमें अकसर उन पर हमला करती रहती थीं और बनी इसराईल उनका निशाना बनते रहते थे।
ऐसे ही एक हमले में बनी इसराईल को हवाली ग़ज़्ज़ा की फ़लस्तीनी कौम अशदूद के हाथों हारने की वजह से मुतबर्रक संदूक ताबूते सकीना से हाथ धोना पड़ा। इस संदूक में तौरात का असल नुस्ख़ा और हज़रत मूसा (अलै.) और हज़रत हारून (अलै.) के तबर्रुख सब मौजूद थे। इन हालात में अल्लाह ने काज़ियों में से एक काज़ी हज़रत शमूईल (अलै.) को नबी का मंसब देकर बनी इसराईल की रुश्द व हिदायत पर लगाया।
तारीख के माहिरों के मुताबिक हज़रत शमूईल (अलै.) हज़रत हारून (अलै.) की नस्ल से हैं। कुरआन की सूरः बकरः के 32 वें रुकूअ में जिस नबी का ज़िक्र किया गया है, वे यही हज़रत शमूईल (अलै.) हैं
हज़रत तालूत का मुक़र्रर किया जाना:
हज़रत शमूईल (अलै.) के ज़माने में भी बनी इसराईल की मुखालिफ़ ताक़तों की शरारतें जारी रहीं तो बनी इसराइल ने हज़रत शमूईल (अलै.) से दरखास्त की कि वे हम पर एक बादशाह (हाकिम) मुक़र्रर कर दें जिसकी रहनुमाई में हम ज़ालिमों का मुक़ाबला करें और अल्लाह के रास्ते में किए जिहाद के ज़रिए दुश्मनों की लाई हुई मुसीबत का ख़ात्मा कर दें। कुरआन पाक में आता है –
तर्जुमा– ‘क्या तुम्हें बनी इसराईल की उस जमाअत का हाल मालूम नहीं जिसने मूसा (अलै.) के बाद अपने ज़माने के नबी से दरख्वास्त की कि हम अल्लाह की राह में जिहाद करेंगे, हमारे लिए एक हुक्मरा मुकर्रर कर दीजिए।’ (अल-बक्ररः 246)
बनी इसराईल की इस मांग पर अल्लाह के नबी (हज़रत शमूईल) ने फ़रमाया-
तर्जुमा– ‘कुछ नामुमकिन नहीं है कि अगर तुमको लड़ाई का हुक़्म दिया गया तो तुम लड़ने से इंकार कर दो। (अल-बकरः 246)
नबी के इस जवाब पर सरदारों ने कहा-
तर्जुमा– ‘ऐसा क्योंकर हो सकता है कि हम अल्लाह की राह में न लड़ें जबकि हम अपने घरों से निकाले जा चुके हैं और अपनी औलादों से अलग किए जा चुके हैं।’ (अल-बकरः : 246)
इस तरह हुज्जत पूरी हो जाने के बाद हज़रत शमूईल (अलै.) ने अल्लाह की बारगाह में रुजू किया और अल्लाह ने तालूत को जो इल्मी और जिस्मानी दोनों लिहाज़ से बनी इसराईल में नुमायां थे उन पर बादशाह मुक़र्रर कर दिया । बनी इसराईल को यह बात पसन्द नहीं आई और बातें बनाने लगे।
तारीख़ के माहिरों के ख़्याल में इस ना-पसंदीदगी की एक वजह यह थी कि एक मुद्दत से नुबूवत का सिलसिला हज़रत याकूब (अलै.) के एक बेटे लावी की नस्ल में और हुकूमत की सरदारी का सिलसिला यहूदा के ख़ानदान में चला आता था। अब यह शरफ़ बिन यमीन यानी हज़रत याकूब (अलै.) के एक और बेटे के खानदान में मुंतकिल होता नज़र आया तो इन सरदारों को जलन हुई और वे इसको सह न सके।
कुरआन पाक में आता –
तर्जुमा– “फिर ऐसा हुआ कि उनके नबी ने कहा अल्लाह ने तुम्हारे लिए तालूत को मुकर्रर कर दिया है। जब उन्होंने यह बात सुनी तो (इताअत व फ़रमाबरदारी के बजाए) कहने लगे, वह हम पर कैसे हुक्मरा बन सकता है? जब कि हम उससे कहीं ज़्यादा हुक्मरां बनने के हक़दार हैं। इसके अलावा उसको माल व दौलत की वुसअत भी हासिल नहीं है।
नबी ने फ़रमाया हुक़ुमरा का जो मेयार तुमने बना लिया है, वह ग़लत है बेशक अल्लाह तआला ने हुक्मरानी की काबिलियत व इस्तेदाद में तुम पर उसको बहतर बरतर बनाया है और इल्म की फ़रावानी और जिस्म की ताक़त दोनों में उसे अहल सअत फ़रमाई है। (और हुक्मरानी व कियादत तुम्हारे देने से नहीं मिली बल्कि अल्लाह जिसको चाहता है, उसको अहल समझ कर) अपनी ज़मीन हुक्मरानी बख़्श देता है और वह अपने तसर्रुफ़ और कुदरत में बड़ी वुसअत रखने वाला और सब कुछ जानने वाला है।” (अल-बकरः 24)
ताबूते सकीना:
बनी इसराईल की रद्दो व कद्द ने यहां तक तूल खींचा कि उन्होंने शमूईल (अलै.) से मांग की कि अगर तालूत की तक़र्रुरी अल्लाह की तरफ़ से है तो उसके लिए अल्लाह का कोई निशान दिखला दे और इस पर उनके नबी (हज़रत शमूईल) ने फ़रमाया–
तर्जुमा– ‘तालूत में हुकूमत की अहिलयत की निशानी यह है कि (अर्ज़े मुकद्दस) ताबूत (तुम खो चुके हो और दुश्मनों के क़ब्ज़े में चला गया है) तुम्हारे पास वापस आ जाएगा और फ़रिश्ते उसको उठा लाएंगे।’ (अल-बकरः 248)
हज़रत शमूईल (अलै.) की यह बशारत सामने आई और बनी इसराईल के सामने अल्लाह के फ़रिश्तों ने ताबूते सकीना को पेश कर दिया। अब बनी इसराईल को इंकार करने के लिए कोई उज्र बाक़ी न रहा और तालूत को बनी इसराईल का बादशाह मान लिया गया।
तालूत और जालूत की लड़ाई और बनी इसराईल का इम्तिहान:
अब तालूत ने बनी इसराईल में आम एलान कर दिया कि वे दुश्मनों (फलस्तीनियों) के मुकाबले में निकलें, इसलिए जब बनी इसराईल तालूत का रहनुमाई में एक नदी के किनारे पहुंचे तो एक और मरहला पेश आया –
तर्जुमा– “जब तालूत लश्करियों को लेकर रवाना हुआ तो उन्होंने कहा बेशक अल्लाह तुमको नहर के पानी से आज़माएगा। पस जो आदमी उससे सेराब होकर पिएगा, वह मेरी ज़माअत में नहीं रहेगा और जो एक चुल्लू पानी के सिवा उससे सैराब होकर नहीं पिएगा वह मेरी ज़माअत में रहेगा फिर थोड़े से लोगों के अलावा सबने उस नहर से सेराब होकर पी लिया, फिर जब तालूत और उसके साथ वे लोग जो (अल्लाह के हुक्म पर सच्चा) ईमान रखते थे, नदी के पार उतरे तो उन लोगों ने (जिन्होंने तालूत के हुक्म की नाफरमानी की थी) कहा, हममें यह ताकत नहीं कि आज जालूत से और उसकी फ़ौज़ से मुकाबला कर सकें। लेकिन वे लोग जो समझते थे उन्हें एक दिन अल्लाह के हुजूर हाज़िर होना है, पुकार उठे (तुम दुश्मनों की ज़्यादती और अपनी कमी से क्यों परेशान हुए जाते हो) कितनी ही छोटी जमाअतें हैं जो बड़ी जमाअतों पर अल्लाह के हुक्म से गालिब आ गईं और अल्लाह सब्र करने वालों का साथी है।” (अल-बकरः 249)
थोड़े में यह कि नतीजा यह निकला कि जब लश्कर नदी के पार हो गया तो जिन लोगों ने ख़िलाफ़वर्जी करके पानी पी लिया था, वे कहने लगे, हममें जालूत जैसे क़वी हैकल और उसकी जमाअत से लड़ने की ताक़त नहीं लेकिन जिन लोगों ने ज़ब्ते नफ़्स और अमीर की इताअत का सबूत दिया था, उन्होंने बे-ख़ौफ़ होकर यह कहा कि हम ज़रूर दुश्मन का मुकाबला करेंगे, इसलिए अल्लाह की कुदरत का यह मुज़ाहिरा अक्सर होता रहता है कि छोटी जमाअतें बड़ी जमाअतों पर ग़ालिब आ जाती हैं, अलबत्ता अल्लाह पर ईमान और इख्लास व सबात शर्त है। चुनांचे मुजाहिदों ने अल्लाह की दरगाह में इख्लास व गिड़गिड़ाहट के साथ दुआ की–
तर्जुमा– ‘और जब वे (मुजाहिद) जालूत और उसकी फ़ौज के मुकाबले में आ गए तो कहने लगे, ऐ परवरदिगार! हमको सब्र दे और हमारे क़दम जमाए रख और काफ़िर कौम पर हम को फ़तह और मदद इनायत फ़रमा।’ (अल-बकरः 250)
हज़रत दाऊद की बहादुरी:
बनी इसराईल (मुजाहिदों) का लश्कर जालूत के मुकाबले में आ खड़ा हुआ। उस लश्कर में एक नवजवान भी था, यह हज़रत दाऊद थे।
To be continued …