हज़रत मुहम्मद ﷺ (भाग १२)

बनू नज़ीर की ग़द्दारी और हश्र

     यह वाकिया 04 हिजरी में पेश आया। जो यहूदी क़बीले यमन से भागकर हिजाज़ (मदीना) में आ बसे थे, उनमें से यह भी मशहूर क़बीला है। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब मदीना तशरीफ़ फ़रमा हुए तो आपने मदीना और उसके आस-पास के यहूदियों से अहद व पैमान करके ‘सुलह व अहद‘ की बुनियाद डाली।

      यहूदियों ने अगरचे ज़ाहिरी तौर पर इस सुलह व अहद पर रज़ामंदी का इज़हार कर दिया था, लेकिन उनके रिवायती हसद व बुग्ज़ और तारीख़ी मुनाफक़त (निफ़ाक) ने इस अहद पर उनको देर तक क़ायम नहीं रहने दिया और उन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और मुसलमानों के खिलाफ़ अंदरूनी और बैरूनी साज़िशों का जाल बिछाना शुरू कर दिया। इसी बीच बनू नज़ीर के ज़िम्मेदार लोगों ने एक दिन यह साज़िश की कि नबी अकरम (ﷺ) की खिदमत में जाकर अर्ज़ करें कि हमको एक मामले में आप से मशवरा करना है और जब आप तशरीफ़ ले आएं तो दीवार के क़रीब उनको बिठाया जाए और जब वे बातचीत में लग जाएं तो ऊपर से एक भारी पत्थर आप (ﷺ) पर गिराकर आपका खात्मा कर दिया जाए।

      चुनांचे नबी अकरम (ﷺ) मदऊ (जिसे बुलाया जाए) होकर तशरीफ़ लाए, अभी आप दीवार के क़रीब बैठे ही थे कि वह्य़ इलाही ने हक़ीक़ते हाल की इत्तिला दे दी और आप (ﷺ) फ़ौरन ख़ामोशी के साथ वापस तशरीफ़ ले आए और वहां जाकर मुहम्मद बिन मुस्लिमा (रजि) को भेजा कि वह बनू नज़ीर तक यह पैग़ाम पहुंचा दें कि चूंकि तुमने ग़द्दारी की और वायदे की खिलाफ़वर्ज़ी की है इसलिए तुमको हुक्म दिया जाता है कि मुकद्दस हिजाज़ की सरज़मीन से जल्द जिला-वतन हो जाओ। मुनाफ़िक़ीन ने यह सुना तो जमा होकर बनू नज़ीर के पास पहुंचे और कहने लगे, तुम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान हरगिज़ तस्लीम न करो और यहां से हरगिज़ जिला-वतन न हो, हम हर तरह तुम्हारे शरीकेकार हैं। 

      बनू नज़ीर ने यह पुश्त पनाही देखी तो हुक्म मानने से इंकार कर दिया और हालात का इन्तिज़ार करने लगे तब नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जिहाद की तैयारी की और अब्दुल्लाह बिन उम्मे कुलसूम को मदीने का अमीर बनाकर बनू नज़ीर की गढ़ी (छोटा किला) पर हमलावरी के लिए निकले। हज़रत अली (रजि) के हाथ में इस्लामी परचम था और सहाबा घेरे हुए थे।

      बनू नज़ीर ने यह देखा तो क़िलाबंद हो गए और यक़ीन कर लिया कि अब मुसलमान हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। चुनांचे नबी करीम (ﷺ) छः दिन (दिन व रात) उनकी घेराबंदी किए रहे और फिर हुक्म दिया कि इनके इन पेड़ों को काट डालो जो इनके लिए फल मुहैय्या करते हैं और इनका वजूद इनके रसद पहुंचाने की ताक़त पहुंचाने की वजह है।

      इन हालात को देखकर बनू नज़ीर के दिलों में रौब और ख़ौफ़ तारी हो गया और उनको मुनाफ़िकों की ओर से मायूसी और रुसवाई के सिवा और कुछ हाथ न आया। आख़िर मजबूर होकर उन्होंने दरख्वास्त की कि इसको देश छोड़ देने का मौक़ा दिया जाए, इसलिए उनको इजाज़त दी गई कि लड़ाई के सामान के अलावा जितना सामान भी वे ऊंटों पर लाद कर ले जाना चाहते हैं, ले जाएं।

      इजाज़तनामा हासिल हो जाने के बाद यह मंज़र भी देखने का था कि कल के बागी, सरकश और फ़ितना फैलाने वाले ग़द्दार, आज अपने हाथों से अपने मकानों को बर्बाद करके (ताकि मुसलमान उसमें आबाद न हों सके) इस वतन को खैरबाद कह रहे थे, जिस जगह हिफ़ाज़त से रहने के लिए नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खुद अपने आप एक अहद नामा के ज़रिए उनको दावत दी थी।

क़ुरआन और बनू नज़ीर 

      इसी वाकिए के सिलसिले में सूरः हश्र नाज़िल हुई है और उसमें बनू नज़ीर की ग़द्दारी, मुनाफ़िकों का फ़ितना, मुसलमानों पर खुदा का एहसान व करम और लड़ाई के मौक़े पर हरे पेड़ों के काटने का हुक्म और ऐसी शक्ल में, जबकि लड़ाई न हो रही हो, गनीमत के माल का मसरफ़ और फ़ै का हुक्म, इन तमाम बातों का तफ़सील के साथ ज़िक्र किया गया है। 

नतीजा और नसीहत

      1. मुनाफ़िक़ का निफ़ाक़ एक खुशफरेबी होती है जो अंजाम के लिहाज़ से न खुद अपने लिए फायदेमंद साबित होता है और न मुनाफ़िकों पर एतमाद करने वाला ही उससे कोई फायदा उठा सकता है, बल्कि कभी-कभी वह अपनी और अपने साथियों की ज़िल्लत और रुसवाई और हलाक़त व बर्बादी का सामान जुटा देता है और हमेशा के घाटे की वजह बन जाता है।

      2. जिस क़ौम में शर व फ़साद और मकर व फ़रेब ‘अखलाक़‘ का दर्जा ले लेते हैं, उनके क़ौमी, जिस्मानी और रूहानी सलाह व खैर की तमाम इस्तेदाद फ़ना हो जाती है और न वह दुनिया में किसी इज़्ज़त व शौकत की मालिक रहती है और न आखिरत में उसके लिए खैर का कोई हिस्सा बाक़ी रहता है।

      3. आम तरीके पर लड़ाई में हरे पेड़ों और हरी खेतियों का काटना और बर्बाद करना लड़ाई की इस्लाहों के मनाफ़ी और मना है, लेकिन जब ये चीज़े जंग के ज़माने में दुश्मन की ओर से ज़्यादा ताक़त की वजह बन कर फ़साद व शर की बक़ा में मददगार हों तो ऐसी हालत में आम हुक्म से अलग है, जैसा कि बनू नज़ीर के वाकिए में क़ुरआन ने बताया है।

To be continued …