हज़रत इलयास अलैहिस्सलाम

हज़रत इलयास अलैहिस्सलाम

क़ुरआन और हज़रत इलयास (अलै.)

      क़ुरआन में हज़रत इलयास (अलै.) का ज़िक्र दो जगह आया है, सूरः ‘अल-अनआम’ में और सूरः ‘अस्साफ़ात’ में सूरः अनआम में उनको सिर्फ नबियों की फहरिस्त में गिना गया है और ‘अस्साफ़ात’ में बेसत (नबी बनाए जाने) और कौम की हिदायत से मुताल्लिक़ हालात को मुख्तसर तौर पर बयान किया है। बेसत के बारे में तफ़सीर लिखने वालों और तारीख़ के माहिरों का ख्याल है कि वह शाम के बाशिंदों की हिदायत के लिए भेजे गये थे और बालबक का मशहूर शहर उनकी रिसालत और हिदायत का मर्कज़ था।

      हज़रत इलयास (अलै.) की क़ौम मशहूर बुत बाल की परस्तार, तौहीद से बेज़ार, शिर्क में मुब्तिला थी। तफ्सीर की किताबों में नक़ल किया गया है कि बाल (बुत) सोने का था, बीस गज़ का कद था, उसके चार मुंह थे और उसकी खिदमतगार चार सौ ख़ादिम मुकर्रर थे। हज़रत इलयास (अलै.) की कौम दूसरे बुतों के साथ खुसूसियत से उसकी पूजा करती थी चुनांचे इस पहलू से क़ुरआन में इसका ज़िक्र आया है – 

      ‘और बेशक इलयास रसूलों में से हैं और वह वक़्त ज़िक्र के क़ाबिल है जब उसने अपनी क़ौम से कहा- क्या तुम अल्लाह से नहीं डरते? क्या तुम बाल को पुकारते हो? और सबसे बेहतर अल्लाह को छोड़े हुए हो? अल्लाह ही तुम्हारा और तुम्हारे अगले बाप-दादों का परवरदिगार हैपस उन्होंने इलयास को झुठलाया तो बेशुबहा वे लाए जाएंगे पकड़े हुए, अलावा उनके जो चुन लिए गए हैं और हमने बाद के लोगों में इलयास का ज़िक्र बाकी रखा। इलयास रह० पर सलाम हो। बेशक हम नेकों को उसी तरह बदला दिया करते हैं बेशक वह हमारे मोमिन बन्दों में से हैं।सूरह अस-सफ्फात 123-128

नसीहत

      हज़रत इलयास (अलै.) और उनकी कौम का वाकिया अगरचे क़ुरआन में बहुत थोड़े में ज़िक्र किया गया है फिर भी उससे यह सबक़ मिलता है कि यहूदी और बनी इसराईल की ज़हनियत इतनी ज़्यादा बिगड़ी हुई थी कि दुनिया की कोई बुराई ऐसी नहीं थी जिसके करने का इनके भीतर लोभ न पाया जाता हो और कोई खूबी ऐसी न थी जिसके ये दिलदादा हों।

      नबियों और रसूलों के एक लंबे और लगातार सिलसिले के बावजूद बुतपरस्ती, अनासिर परस्ती, तारापरस्ती, ग़रज़ गैरअल्लाह की परस्तिश का कोई शोबा ऐसा न था जिसके परस्तार ये न बने हों।

      पर कुरआन मजीद में बनी इसराईल से मुताल्लिक इन वाक़ियों में जहां उनकी बद-बख्ती और टेढ़ेपन पर रोशनी पड़ती है वहीं हमें यह नसीहत भी मिलती है कि अब जबकि नबियों और रसूलों का सिलसिला खत्म हो चुका है और आखिरी नबी के आ जाने और क़ुरआन के आखिरी पैग़ाम ने इस सिलसिले को ख़त्म कर दिया है तो हमारे लिए बिल्कुल ज़रूरी है कि बनी इसराईल की बिगड़ी फ़ितरत और तबाह ज़हनियत के ख़िलाफ़ अल्लाह के हुक्मों को मज़बूती से पकड़ें और उनमें टेढ़ और बिगाड़ से काम लेकर उनके ख़िलाफ़ चलने की जुर्रत न करें। गोया हमारा तरीक़ा सुपुर्द व तस्लीम हो इंकार और रास्ते से हटना न हो कि “इस्लाम’ के सिर्फ यही मानी हैं।

नोट – इंजील यूहन्ना (John) में उनको एलिया (Eliah) नबी कहा गया है।

To be continued …