बनी इसराईल की नाफरमानी और उसका नतीजा:
जब हज़रत मूसा ने बनी इसराईल से कहा कि तुम इस बस्ती (अरीहा) में दाखिल हो और दुश्मन का मुकाबला करके उस पर काबिज हो जाओ, अल्लाह तुम्हारे साथ है।
तो बनी इसराईल ने यह सुनकर जवाब दिया कि, ‘मूसा! यहां तो बड़े खालिप लोग रहते हैं। हम तो उस वक़्त तक उस बस्ती में दाखिल न होंगे जब तक वे वहां से निकल न जाएं।’
अफ़सोस बदबख़्तो ने यह न सोचा कि जब तक हिम्मत व बहादुरी के साथ तुम उनको वहां से न निकालोगे, तो वे जालिम ख़ुद कैसे निकल जाएंगे?
यूशे और कालिब ने जब यह देखा तो कौम को हिम्मत दिलाई और कहा, शहर के फाटक से गुजर जाओ, कुछ मुश्किल नहीं, चलो और उनका मुकाबला करो। हमको पूरा यकीन है कि तुम ही ग़ालिब रहोगे।
‘इन डरने वालों में से दो ऐसे आदमियों ने जिन पर अल्लाह ने अपर फल और इनाम कियाकि तुम इन जाबिरों पर दरवाजे की तरफ से दाखिल हो जाओ।बस जिस वक्त तुम दाखिल हो जाओगे,तुम बेशक गालिब रहोगेऔर (यह भी कहा कि अल्लाह ही पर भरोसा रखो, अगर तुम ईमान लाए हो।’ अल-माइदा : 23
लेकिन बनी इसराईल पर इस दात का कुछ भी असर न हुआ और वे पहले की तरह अपने इंकार पर कायम रहे और जब हज़रत मूसा ने ज़्यादा जोर दिया तो अपने इंकार पर इसरार करते हुए कहने लगे –
उन्होंने कहा, ऐ मूसा! हम कभी इस शहर में उस वक्त तक दाखिल नहीं होंगे, जब तक वे उसमें मौजूद हैं। पस तू और तेरा रब दोनों जाओ और उनसे लड़ो, हम तो यहीं बैठे हैं। (यानी तमाशा देखेंगे) अल-माइदा 24
हजरत मूसा ने जब यह ज़लील और बेहूदा बात सुनी तो बहुत दुखी हुए और इंतिहाई रंज़ व मलाल के साथ अल्लाह के हुजूर अर्ज किया,
“ऐ अल्लाह! मैं अपने और हारून के सिवा किसी पर काबू नहीं रखता, सो हम दोनों हाज़िर हैं। अब तू हमारे और इस नाफरमान कौम के दर्मियान जुदाई कर दे, ये तो सखल ना अस्त हैं।’
अल्लाह ने हज़रत मूसा पर वह् नाजिल फ़रमाई,
‘मूसा! तुम ग़मगीन न हो, इनकी नाफरमानी का तुम पर कोई बोझ नहीं। अब हमने इनके लिए यह सजा मुकर्रर कर दी है कि ये चालीस साल इसी मैदान में भटकते फिरेंगे और इनको अर्जे मुक़द्दस में जाना नसीब न होगा। हमने उन पर अर्जे मुक़द्दस को हराम कर दिया है।’
(अल्लाह तआला ने) कहा:
‘बेशक उन पर अर्जे मुकद्दस का दाखिला चालीस साल तक हराम कर दिया गया। इस मुद्दत में ये इसी मैदान में भटकते रहेंगे। बस तू नाफरमान क़ौम पर ग़म न खा और अफ़सोस न कर। सूरह मईदा 5:26
(सीना घाटी को ‘तीह‘ इसलिए कहते हैं कि कुरआन ने बनी इसराईल के लिए कहा है कि ‘यतीह-न फ़िलअर्ज‘ (ये उसमें भटकते फिरेंगे) जब कोई आदमी रास्ते से भटक जाए तो अरबी में कहते हैं ‘ता-ह फ़्ला‘)
इस सूरतेहाल के बाद हजरत मुसा और हजरत हारूरन को भी उसी मैदान में रहना पड़ा और वे भी अर्जे मुक़द्दस में दाखिल न हो सके, क्योंकि जरूरी था कि बनी इसराइल की रुश्द व हिदायत के लिए अल्लाह का पैग़म्बर उनमें मौजूद रहे।
हजरत हारून की वफ़ात:
ऊपर लिखे हालात में जब बनी इसराईल ‘तीह’ के मैदान में फिरते-फिराते पहाड़ की उस चोटी के करीब पहुंचे, जो ‘हूर’ के नाम से मशहूर थी, तो हजरत हारून को मौत का पैग़ाम आ पहुंचा। वह और हजरत मूसा अलैहि सलाम अल्लाह के हुक्म से ‘हूर’ पर चढ़ गए और वहीं कुछ दिनों अल्लाह की इबादत में लगे रहे और जब हज़रत हारून का वहां इंतिकाल हो गया तो हज़रत मूसा अलैहि सलाम उनको कफ़नाने-दफ़नाने के बाद नीचे उतरे और बनी इसराईल को हारून की वफ़ात से मुत्तला किया।
हज़रत मूसा की वफ़ात:
हज़रत मूसा अलैहि सलाम से रिवायत की गई एक हदीस के मुताबिक जब हजरत मूसा अलैहि सलाम की बफ़ात का वक्त करीब आ गया, तो मौत का फ़रिश्ता उनकी खिदमत में हाजिर हुआ।
फ़रिश्ते से कुछ बात-चीत के बाद हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने अल्लाह तआला से अर्ज़ किया कि अगर लम्बी से लम्बी जिंदगी का आखिरी नतीजा मौत ही है, तो फिर वह चीज़ आज ही क्यों न आ जाए और दुआ की कि ऐ अल्लाह! इस आखिरी वक़्त में अर्जे मुक़द्दस से करीब कर दे।
हज़रत मूसा की दुआ के मुताबिक उनकी क़ब्र ‘अरीहा‘ की बस्ती में कसीदे अमर (लाल टीला) पर वाकेय है, जिसका ज़िक्र एक हदीस में भी आया है। वाजेह रहे कि ‘तीह‘ मैदान के सबसे करीब वादी मुक़द्दस का इलाका अरीहा की बस्ती है, गोया अल्लाह पाक ने उनकी आखिरी दुआ को भी शरफ़े कुबूलियत बख्शा।
(अरीहा को रीहू भी कहा गया है और आजकल Dericeo भी कहा जाता है। यह जगह जॉर्डन नदी के पच्छिम में युरूशलम से कुछ मील के फासले पर है और यहां एक कब्र ‘बनी मुसा’ के नाम से मशहूर है।
इंशा अल्लाह उल अजीज! अगले पार्ट 10 में हम हज़रत मूसा की नुबूवत के ज़माने से मुताल्लिक़ दूसरे अहम् व इबरतनाक वाकियों पर गौर करेंगे।
To be continued …