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हज़रत मूसा अलैहि सलाम की एक नबी की हैसियत से मिस्र को वापसी और हज़रत हारून अलैहि सलाम को रिसालत का मंसब अता किया जाना।
मिस्र में दाखिला:
जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम नुबूवत के मंसब से सरफ़राज़ होकर कलामे रब्बानी से फैजयाब बनकर और दावत और हक़ की तब्लीग़ में कामयाबी व कामरानी की खुशखबरी पा कर मुक़द्दस वादी से उतरे, तो अपनी बीवी के पास पहुंचे जो वादी के सामने जंगल में उनके इंतजार में रास्ता देख रही थीं। उनको लिया और यहीं से हुक्मे इलाही की तामील के लिए मिस्र रवाना हो गए। मंजिलें तै करते हुए जब मिस्र पहुंचे तो रात हो गई थी। ख़ामोशी के साथ मिस्र में दाखिल होकर अपने मकान पहुंचे, अन्दर दाखिल हुए और मां के सामने एक मुसाफ़िर की हैसियत में जाहिर हुए। यह बनी इसराईल में मेहमानवाज घर था।
हजरत मूसा अलैहि सलाम की खूब ख़ातिर मदारत की गई। इसी बीच उनके बड़े भाई हजरत हारून आ पहुंचे। यहां पहुंचने से पहले ही हारून को अल्लाह की तरफ़ से रिसालत का मंसब दिया जा चुका था, इसलिए उनको वह्य के ज़रिए हजरत मूसा अलैहि सलाम का सारा किस्सा बता दिया गया था। वह भाई से आकर लिपट गए और फिर उनके घर वालों को घर के अन्दर ले गए और मां को सारा हाल सुनाया। तब सब ख़ानदान के लोग आपस में गले मिले और बिछड़े हुए भाई एक दूसरे की बीती जिंदगी के हालात से वाकिफ हुए और मां की दोनों आंखों ने ठंडक हासिल की।
फ़िरऔन के दरबार में हक की दावत:
बहरहाल हजरत मूसा अलैहि सलाम व हजरत हारून अलैहि सलाम के दर्मियान जब मुलाकात और बात-चीत का सिलसिला खत्म हुआ, तो अब दोनों ने तै किया कि अल्लाह का हुक्म पहुंचाने के लिए फ़िरऔन के पास चलना और उसको अल्लाह का पैगाम सुनाना चाहिए। इस ग़रज़ से दोनों भाई यानी अल्लाह के सच्चे पैग़म्बर व नबी फ़िरऔन के दरबार में पहुंचे और बगैर कोई डर और ख़तरा महसूस किए दाखिल हो गए। जब फ़िरऔन के तहत के करीब पहुंचे तो हज़रत मूसा व हारून अलैहि सलाम ने अपने आने की वजह बयान की और बात-चीत शुरू हुई।
‘और मूसा ने कहा, ऐ फिरऔन! मैं जहानों के परवरदिगार का भेजा हुआ रसूल हूं। मेरे लिए किसी तरह जेबा नहीं कि अल्लाह पर हक और सच के अलावा कुछ और कहूं, बेशक मैं तुम्हारे लिए, तुम्हारे परवरदिगार के पास से दलील और निशानी लाया हूं पस तू मेरे साथ बनी इसराईल को भेज।’ अल आराफ 7:104-105
फ़िरऔन ने जवाब में कहा –
क्या हमने तुझको अपने यहां लड़का-सा नहीं पाला और तू हमारे यहां एक मुद्दत तक नहीं रहा और तूने उस जमाने में जो कुछ काम किया वह तुझे खुद भी मालूम है और तू नाशुक्रगुजार है। 26:19
हजरत मूसा अलैहि सलाम ने कहा-
मैंने वह काम (मिस्री का क़त्ल) जरूर किया और मैं चूक जाने वालों में से हूं, फिर यहां से तुम्हारे खौफ से भाग गया, फिर मेरे रब ने मुझको सही फ़ैसले की समझ दी और मुझको अपने पैगम्बरों में से बना लिया (ये उसकी हिक्मत की करिश्मासाजियां है) और मेरी (परवरिश) का यह एहसान जिसको तू मुझ पर जता रहा है, क्या ऐसा एहसान है कि तू बनी इसराईल को गुलाम बनाए रखे? 26:20-22
फ़िरऔन बोला – बोला फ़िरऔन क्या मानी हैं परवरदिगारे आलम के?’ 26:23
हजरत मूसा अलैहि सलाम ने फ़रमाया –
‘रब्बुल आलमीन’ वह हस्ती है, जिसके रब होने के असर से तेरा और तेरे बाप का वजूद भी खाली नहीं है, यानी जिस वक्त तू वजूद में न आया था, तो तुझको पैदा किया और तेरी तरबियत की और इसी तरह वह तुझसे पहले तेरे बाप-दादा को आलमे वजूद में लाया और उनको अपने रब होने से नवाज़ा।’
फ़िरऔन ने जब इस खामोश कर देने वाली और जबरदस्त दलील को सुना और कोई जबाव न बन पड़ा तो दरबारियों से कहने लगा, मुझे ऐसा मालूम होता है कि यह जो खुद को तुम्हारा पैगम्बर और रसूल कहता है, मजनूं और पागल है।
हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने जब यह देखा कि उससे अब कोई जवाब नहीं बन पड़ता तो सोचा यह बेहतर है कि ज्यादा दिलनशीं अन्दाजे बयान में अल्लाह के रब होने को वाजेह किया जाए, इसलिए फ़रमाया :
‘यह जो पूरब और पच्छिम और उसके बीच सारी कायनात नज़र आती है उसका रब होना उसकी कुदरत में है, उसी को मैं ‘रब्बुल आलमीन’ कहता हूं। तुम अगर जरा मी अक्ल से काम लो तो इस हकीकत को आसानी से पा सकते हो।’
एक बार फिर हजरत मूसा ने फ़िरऔन को यद दिलाया कि जो रास्ता तूने अख्तियार किया है, यह सही नहीं है, बल्कि रब्बुल आलमीन ही वह जात है, जो परश्तिश के लायक है और उसके मुकाबले में किसी इंसान का रब होने का दावा करना खुला हुआ शिर्क है। ऐ फ़िरऔन! तू इससे बाज़ आ क्योंकि उस हस्ती ने जिसको मैं रब्बुल-आलमीन कह रहा हूं, हम पर यह वह्य उतारी है कि जो आदमी हक़ के इस कौल की ख़िलाफ़वर्जी करेगा। झल्लाएगा और उससे मुंह मोड़ेगा, वह अल्लाह के अजाब का हकदार ठहरेगा।जो कोई सरताबी करे तो हम पर वह्य उतर चुकी कि उसके लिए अनाब का पयाम है। तहा 20:48
फ़िरऔन ने फिर वही सवाल दोहराया-
अगर ऐसा ही है तो बतलाओ तुम्हारा परवरदिगार कौन है। ताहा 20:49
मूसा ने कहा –
हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज को उसका वजूद बख्शा और उस पर (जिंदगी व अमल की) राह खोल दी। ताहा 20:50
फिर उनका क्या हाल होता है जो पिछले जमानों में गुजर चुके। ताहा 20:51
मूसा ने कहा-
इस बात का इल्म मेरे परवरदिगार के पास नविश्ते में है, मेरा परवरदिगार ऐसा नहीं कि खोया जाए या भूल में पड़ जाए, वह परवरदिगार जिसने तुम्हारे लिए जमीन बिछौने की तरह बिछा दी, चलने-फिरने के लिए उसमें राहें निकाल दी, आसमान से पानी बरसाया, उसकी सिंचाई से हर तरह की वनस्पति के जोड़े पैदा कर दिए, खुद भी खाओ और मवेशी भी चराओ, इस बात में अक्ल वालों के लिए कैसी खुली निशानियां हैं? उसने इस जमीन से तुम्हें पैदा किया, उसी में लौटना है और फिर उसी से दूसरी बार उठाएं जाओगे। ताहा 20:52-55
हज़रत हारून (अ.) का किरदार:
तफ्सीर के उलेमा लिखते हैं कि फ़िरऔन और मूसा के इन मुकालमों में हजरत हारून अलैहि सलाम दोनों के दर्मियान तर्जुमान होते और हजरत मूसा अलैहि सलाम की दलीलों और सबूतों को बड़े ही असरदार अंदाज के साथ अदा फ़रमाते थे।
फिरऔन का रद्देअमल (प्रतिक्रिया):
अलग-अलग मज्लिसो में बात-चीत का यह सिलसिला जारी रहा और फिरऔन ने बहस के सिलसिले को ख़त्म करने के लिए दूसरे तरीके अखियार किए। आखिरकार उसने अपनी कौम को मुखातब करते हुए कहा-
और फ़िरऔन ने कहा, ऐ जमाअत! मैं तुम्हारे लिए अपने सिवा कोई खुदा नहीं जानता। कसस 28:38
और फिर (अपने वजीर मुशीर को) हुक्म दिया-
ऐ हामान! मेरे लिए एक बुलन्द इमारत तैयार कर, ताकि मैं आसमानों की बुलन्दियों और उनके जरियों तक दस्तरस हासिल कर सकूँ और इस तरह मूसा के खुदा का हाल मालूम कर सकूँ और मैं तो उसको झूठा समझता हूं। 40: 36-37
हामान:
हामान के बारे में कुरआन ने साफ़ नहीं किया कि यह शख्सियत का नाम है या ओहदे और मंसब का और न उसने इस पर रोशनी डाली कि हामान ने इमारत तैयार कराई या नहीं। तौरात भी इस बारे में ख़ामोश है।
फ़िरऔन के दरबार में मुजाहरा:
गरज फ़िरऔन का ख़दशा बढ़ता ही रहा और नौबत यहां तक पहुंची कि-
फ़िरऔन ने कहा, अगर तूने मेरे सिवा किसी को माबूद बनाया तो मैं तुझे जरूर कत्ल कर दूंगा। 26:29
मूसा ने कहा –
अगरचे मैं तेरे पास जाहिर निशान लाया हूं, तब भी?’26:30
फ़िरऔन ने कहा –
अगर तू सच्चा है, तो वह निशान दिखा।’ 26:31
हज़रत मूसा अलैहि सलाम आगे बढ़े और भरे दरबार में फ़िरऔन के सामने अपनी लाठी को जमीन पर डाला। उसी वक्त उसने अजगर की शक्ल अख्तियार कर ली और यह हकीकत थी, नज़र का घोखा न था और फिर हजरत मुसा अलैहि सलाम ने अपने हाथ को गरेबान के अन्दर ले जाकर बाहर निकाला तो वह एक रोशन सितारे की तरह चमकता हुआ नज़र आ रहा था। यह दूसरी निशानी और दूसरा मोजजा था।
फ़िरऔन के दरबारियों ने जब इस तरह एक इसराईली के हाथों अपनी कौम और अपने बादशाह की हार को देखा, तो तिलमिला उठे और कहने लगे, बेशक यह बहुत बड़ा माहिर जादूगर है और उसने यह सब ढोंग इसलिए रचाया है कि तुम पर ग़ालिब आकर तुमको तुम्हारी सरज़मीन (मिस्र) से बाहर निकाल दे, इसलिए अब हमको सोचना है कि उसके बारे में क्या होना चाहिए।
आखिर फ़िरऔन और फ़िरऔनियों के आपसी मशवरे से यह तै पाया कि फ़िलहाल तो इसको और हारून को मोहलत दो और इस मुद्दत में पूरे राज्य से माहिर जादूगरों को राजधानी में जमा करो और फिर मूसा का मुकाबला कराओ, यह हार खा जाएगा और इसके तमाम इरादे ख़ाक में मिल जाएंगे।
तब फ़िरऔन ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम से कहा, मुसा! हम समझ गए कि तू इस हीले से हमको मिस्र की धरती से बेदखल करना चाहता है, इसलिए तेरा इलाज अब इसके सिवा कुछ नहीं कि बड़े-बड़े माहिर जादूगरों को जमा करके तुझको हार दिला दी जाए। अब तेरे और हमारे दर्मियान मुकाबले के दिन का समझौता होना चाहिए और फिर न हम उससे टालेंगे और न तुम वादाखिलाफ़ी करना।
हजरत मूसा अलैहि सलाम ने फ़रमाया कि इस काम के लिए सबसे बेहतर वक़्त ‘यौमुजीना’ (जश्न का दिन) है, उस दिन सूरज बुलन्द होने पर हम सबको मौजूद होना चाहिए।
नोट: मिस्रियों की ईद का दिन जो ‘वफ़ाउन्नैल’ के नाम से मशहूर है, क्योंकि उनके यहां तमाम ईदों में सबसे बड़ी ईद का दिन यही था।
गरज हजरत मूसा अलैहि सलाम और फ़िरऔन के दर्मियान ‘यौमुजीना’ ते पाया और फ़िरऔन ने उसी वक्त अपने जिम्मेदारों और दरबारियों के नाम हुक्म जारी कर दिए कि पूरे राज्य में जो भी मशहूर और माहिर जादूगर हों, उनको जल्द-से-जल्द राजधानी रवाना कर दो।
To be continued …
इंशा अल्लाह अगले पार्ट 4 में हम देखंगे जादूगरों की हार और फ़िरऔन का रद्देअमल।